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गीता और वेद –

गीता वेदों को बहुत आदर देती है । भगवान अपने को समस्त वेदों के द्वारा जाननेयोग्य, वेदान्तका रचनेवाला और वेदों को जाननेवाला कहकर उनका महत्...



गीता वेदों को बहुत आदर देती है । भगवान अपने को समस्त वेदों के द्वारा जाननेयोग्य, वेदान्तका रचनेवाला और वेदों को जाननेवाला कहकर उनका महत्तव बहुत बढ़ा देते हैं । संसार रूपी अश्वत्थवृक्षका वर्णन करते हुए भगवान कहते हैं कि ‘मूलसहित उस वृक्षको तत्व से जाननेवाला ही वास्तव में वेद के तत्व को जाननेवाला है’ । इससे भगवान ने यह बतलाया है कि जनत के कारणरूप परमात्मा के सहित जगत के वास्तविक स्वरूप को तत्व से जानना ही वेदों का तात्पर्य है । भगवान ने कहा है कि “जो बात वेदों के द्वारा विभागपूर्वक कहीं गयी है, उसी को मैं कहता हूं ।”
इस प्रकार अपनी उक्तियों के समर्थन में वेदों को प्रमाण बतलाकर भगवान ने वेदों की महिमा को बहुत अधिक बढ़ा दिया है । भगवान ने ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद – वेदत्रयी को अपना ही स्वरूप बतलाकर उसको और भी अधिक आदर दिया है । भगवान वेदों को अपने से ही प्रकट बतलाते है और परमात्मा को प्राप्त करने के अनेकों साधन वेदों में बतलाये हैं । इससे मानों भगवान स्पष्टरूप से यह कहते हैं कि वेदों में केवल भोग प्राप्ति के साधन ही नहीं है जैसा की कुछ अविवेकी जन समझते हैं – किंतु भगवत्प्राप्ति के भी एक – दो नहीं, अनेकों साधन भरे पड़े हैं । भगवान परमपद के नाम से अपने स्वरूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वेदवेत्तालोग उसे अक्षर के नाम से निर्देश करते हैं । इससे भी भगवान यहीं सूचित करते हैं कि वेदों में केवल सकाम पुरुषों द्वारा प्रापणीय इस लोक के एवं स्वर्ग के अनित्य भोगों का ही वर्णन नहीं है, उनमें परमात्मा के अविनाशी स्वरूप का भी विशद वर्णन है । उपर्युक्त वर्णन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वेदों को भगवान ने बहुत अधिक आदर दिया है ।

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